Naxals hold ‘Jan Adalat’ in Bihar
Posted by ajadhind on February 28, 2009
Just 145 kms from Bihar’s capital Patna,armed naxals from the People’s War Group are regularly holding a people’s court to dispense justice.
TIMES NOW travelled to Bihar and found about fifty armed naxals from the People’s War Group, holding a Jan Adalat (people’s court) in Banke Bazar of Gaya district. The naxals held this court to convey to the villagers about their fight against the atrocities of the police and the rich capitalists.
More shockingly, the Jan Adalat was being held in the presence of the heads of five village panchayats, who hailed the ‘effort’ for the naxals, raising pro-naxal slogans ‘lal salam, lal salam’.
Around 2000 villagers participated in the Jan Adalad. Visibly pleased by the ‘justice’ dispensed by the naxals, the villagers say that the naxals are a big help to them as the state government is crushing their rights.
”The capitalist and feudal landlords have suppressed us. And now these naxals have shown us the way to progress and development.” said Sukhdev Prasad, a villager from Banke Bazar.
Another villager from Warheta, Ramanuj Rai said, “We don’t get our right that is why we have come here. These naxals are showing us the way to fight for our rights. The Maoist and naxals have found the way to redress our problems. The government hasn’t helped us much as the Maoists. If the Maoists weren’t here we wouldn’t be respected by the rich and the capitalists”
The naxals, on there part, have taken their fight for justice to a new level. They are telling the villagers that that 90 % of the poor people were the victims of the police atrocities.
A naxal leader said the gathering, “More than 90% of people face police attrocities. They frame false charges against people – accusing them of being terrorists and criminals. The common man keeps fighting for their rights, while the capitalist and the rich keep suppressing us. But no matter how much we will continue our fight.”
The naxals also called for a boycott of the Lok Sabha polls and even paid tribute to around 14,000 naxals who were killed in parts of Andhra Pradesh, Telangana, Uttaranchal, Nepal and Bihar.
Ironically, the police are not even aware of this Jan Adalat that was held in broad daylight. Twenty-two out of Bihar’s 38 districts are facing the naxal menace. Despite the spate of brutal Naxal attacks in recent time, no one seems to have learnt the lesson yet – neither the cops nor the authorities.
By Prakash Singh, Patna
Harsh Thakor said
Shambhu Goel said
Shambhu Goel said
.हाई कोर्ट के इस आदेश के विभाग में पहुँचने के बाद महज एक खानापूर्ति करने के लिए दिनांक २७.१२.२०१० को एक पत्र जिसका पत्रांक १४७० दिनांक २७.१२.२०१० कृषि निदेशालय से हमारे नाम से स्पष्टीकरण मांगने के लिए प्रेषित किया जाता है जो इस प्रकार है :-
“उपर्युक्त विषयक कहना है की कृषि उत्पादन आयुक्त के आदेश ज्ञापांक ४९६४ दिनांक ३०.०९.२०१० के आलोक में आपके प्रतिष्ठान के NPK मिश्रण विनिर्माण प्रमाण पत्र एवं विपणन प्राधिकार पत्र के नवीकरण की कार्रवाई प्रक्रियाधीन थी|इस बीच आपने अपने पत्र संख्या HAC –OUTLET CMD/10/235/01 दिनांक 22.11.2010 के द्वारा सूचित किया है की आपके द्वारा NPK मिश्रण का विनिर्माण कार्य प्रारम्भ कर दिया गया है |आप अवगत हैं की बिना विनिर्माण प्रमाण पत्र विनिर्माण कार्य करना उर्वरक नियंत्रण आदेश १९८५ के खंड १२ का उल्लंघन है|आपके द्वारा बिना विनिर्माण प्रमाण पत्र प्राप्त किया ही विनिर्माण कार्य प्रारम्भ कर दिया गया है जो उर्वरक नियंत्रण आदेश १९८५ के खंड १२ का उल्लंघन है और आपका कृत उर्वरक नियंत्रण आदेश के विरूद्ध है तथा गैर कानूनी है |
अतः आप स्पष्ट करें की उपरोक्त आरोप के आलोक में क्यों नहीं आपके प्रतिष्ठान का विनिर्माण प्रमाण पत्र एवं विपणन प्राधिकार पत्र के नवीकरण हेतु आपसे प्राप्त आवेदन को उर्वरक नियंत्रण आदेश के खाद १८(२) के अंतर्गत अस्वीकृत कर दिया जाए |आप अपना स्पष्टीकरण दिनांक ०३.०१.२०११ तक अवश्य समर्पित करें अन्यथा एकतरफा निर्णय ले लिया जाएगा “ |
(N.B. विभाग द्वारा स्वयं ही यह स्वीकार किया जा रहा है की हमारे मिश्रण विनिर्माण प्रमाण पत्र एवं विपणन प्राधिकार पत्र के “नवीकरण “की कार्रवाई प्रक्रियाधीन थी |तब हमपर क्या नवीकरण की धाराओं के उल्लंघन में आरोप लगाना उचित होगा या की नए अनुज्ञप्ति पंजीकरण की धाराओं के उल्लंघन का आरोप लगाना कहाँ तक उचित होता है |ऐसे भी यह एक गहन चिंता का विषय है की प्राथमिकी दर्ज करवाने के निमित्त पत्र में खंड १२ और ७ के उल्लंघन का उल्लेख है जबकि स्पष्टीकरण में खंड १८(२) के उल्लंघन का आरोप भी लगाया जा रहा है |
एक सोची समझी हुई बदनीयती की तहत एक साजिश कर के प्राथमिकी के उपरान्त स्पष्टीकरण पूछने का एक ही तात्पर्य है की जिससे उच्च न्यायालय को पुख्ता जवाब दिया जा सके |ऐसे प्राथमिकी हो जाने के बाद ऐसे स्पष्टीकरण को कोई औचित्य ही नहीं रह जाता है |
संजय सिंह की मंशा तो शुरू से ही थी की रु. १० लाख मिलने के बाद ही नवीकरण किया जाएगा |यह गैर कानूनी उगाही न होते देख इस व्यक्ति ने अपनी सारी ताकत झोंक कर और एक खास बेईमानी की नियत से न सिर्फ विभाग का समय बर्बाद करवाया है ,इसके साथ सैकड़ों मजदूरों को भी बेरोजगार कर दिया है ,लाखों रुपैये की खाद को पानी में परिवर्तित होकर बह जाने की खास कोशिश की है |हमारी बर्बादी करना तो इसके जेहन में २००७ से समा गयी थी जब यह व्यक्ति उल्टा सीधा आदेश डा. बी. राजेंद्र जी से करवाना शुरू कर दिया था |पर बिहार में भारतीय प्रशासनिक सेवा के ऐसे पदाधिकारी उल्टा सीधा आदेश देते ही रहते हैं जिससे इनका प्रभुत्व कायम रहे ,भले ही जनता का नुकसान होते रहे ,कम से कम कोर्ट कचहरी के चक्कर में समय तो बर्बाद ये पदाधिकारी करवा ही देते हैं और इसी में इनको दीखता है अपना बांकपन ,अपनी शक्ति |इन लोगों को यह भी शर्म नही है की कोर्ट के आदेश किस कदर इनके मुहं पर तमाचा लगाते है |कोर्ट ने इनके और एक खास कृषि उत्पादन आयुक्त के ऐसे ही आदेश के विरूद्ध एक अन्य मामले में जो हमारे मामले से हूबहू मिलता जुलता है में टिप्पणी की थी वो इस प्रकार है :- CWJC 16645 of 2010 order dated 1.10.2010 – “It is evident from the impugned order that they suffer from non-application of mind to the requirements of the Fertilizer Control Order not only with respect to the facts of the case but also the requirement of law .
“Once the petitioner had taken the stand that shortage of equipments in the laboratory was rectified,either the respondent authorities ought have accepted the same or they could have made inspection of the Laboratory to verify the statements made and thereafter appropriate orders should have been passed keeping in view the valuable rights of the petitioner involved in the matter .
“On consideration of the entire facts and circumstances the order dated 4.06.2010 of the Director,Agriculture and 13.09.2010 of the Agriculture Production Commissioner are set aside and the matter is remanded to the Director ,Agriculture to consider the question of renewal of the registration certificate of the petitioner in accordance with law after considering the documents submitted by the petitioner and,if necessary by getting the inspection of the petitioner’s laboratory done by a team of competent Officers .
“Let the application for renewal of the petioner be considered and disposed of within a period of three weeks from the date of receipt /production of a copy of this order.
The writ petition is disposed of with the afore said observations and directions .”
Sd/- Ramesh Kumar Dutta ,J.
लेकिन शर्म तो इन प्रशासनिक पदाधिकारियों ने एक दानवी हैवान के पहलू में गिरवी रख दी है |इसका एक खास कारण यह भी है की ऐसे पदाधिकारिओं का मान बढ़ता है चोर और सिरफिरे राजनीतिज्ञों का प्रश्रय मिलने पर |और कम से कम आज के कृषि विभाग में ऐसा ही हो रहा है |
१९.दिनांक २०.१२.२०१० के उच्च न्यायालय के आदेश के आलोक में उच्च न्यायालय के निर्देशानुसार हमारे अनुज्ञप्ति नवीकरण को नहीं करके कृषि निदेशक ने आदेश संख्या २५ दिनांक ७.०१.२०११ को हमारे आवेदन को पुनः अस्वीकृत कर दिया वह भी जब उच्च न्यायालय ने स्पष्ट कर दिया था की “matter for renewal of certificate of Registration for manufacture and sale of Mixture of fertilizers is pending before the Director,Agriculture ,Government of Bihar since 30.09.2010 when order passed by Agriculture Production Commissioner,Bihar in appeal no. 7 of 2010 was communicated “.
कृषि निदेशक ने इस मद में एक आदेश निकाला जो दिनांक ६.०१.२०११ को दस्तखत किया गया और वह इस प्रकार है :-
प्वाइंट नो. ६ .”प्रतिष्ठान से प्राप्त स्पस्टीकरण संतोषप्रद एवं स्वीकार्य नहीं है |प्रतिष्ठान की ओर से प्राप्त स्पस्टीकरण से स्पस्ट होता है की उनके द्वारा उर्वरक नियंत्रण आदेश १९८५ के खंड १८(४)एवं ११(४)के अंतर्गत प्रतिष्ठान के विनिर्माण एवं विपणन प्राधिकार पत्र को वैध माना गया है |इस सम्बन्ध में उक्त दोनों खण्डों का उल्लेख करना समीचीन प्रतीत होता है |खंड १८(४) निम्नवत है :-
“where the application for renewal is made within the time specified in sub-clause (1)or sub-clause (3),the applicant shall be deemed to have held a valid certificate of manufacture until such date as the registering authority passes order on application for renewal “
तथा ११(४) निम्नवत है :-
“where the application for renewal of certificate of registration is made within the time specified in sub-clause (1)or sub-clause (3),the applicant shall be deemed to have held a valid certificate of registration until such date as the controller passes order on application for renewal”
उपरोक्त दोनों खण्डों के अवलोकन से स्पष्ट है की नवीकरण हेतु लंबित विनिर्माण प्रमाण पत्र एवं विपणन प्राधिकार पत्र उस अवधि तक वैध है जब तक की पंजीकरण पदाधिकारी के द्वारा आदेश पारित नहीं कर दिया जाय |में. हिमालय एग्रो केमिकल्स प्रा. ली. के मामले में प्रतिष्ठान का नवीकरण हेतु प्राप्त आवेदन अद्योहसताक्षरी के आदेश दिनांक २३.०७.१० के द्वारा अस्वीकृत किया जा चूका है |अतः उर्वरक नियत्रण आदेश १९८५ के खंड १८(४) एवं ११(४) के अनुसार दिनांक २३.०७.२०१० को प्रतिष्ठान के विनिर्माण प्रमाण पत्र एवं विपणन प्राधिकार पत्र की वैधता समाप्त हो चुकी है |
प्वाइंट न..७ :-कृषि उत्पादन आयुक्त के द्वारा अपील -७/२०१० में पारित आदेश में कृषि निदेशक को निदेश दिया गया था की अपीलकर्ता के प्रयोगशाला में सभी न्यूनतम उपकरणों की जांच कर संतुष्ट होने पर अपीलकर्ता के विनिर्माण प्रमाण पत्र को नवीकृत करेंगे एवं इसे निर्गत करते समत विपणन प्राधिकार पत्र को नवीकृत करने पर विचार करेंगे |अपिलवाद के दिए गये आदेश के आलोक में प्रयोगशाला की सुविधा की जांच कर अग्रेतर कार्रवाही की जा रही थी |परन्तु इसी बीच में हिमालय एग्रो केमिकल्स प्रा. ली. के द्वारा अनाधिकृत रूप से विनिर्माण एवं विपणन कार्य प्रारम्भ कर दिया गया जबकि अध्योहस्ताक्षरी के द्वारा कृषि निदेशालय के ज्ञापांक ८९८ दिनांक २३.०७.२०१० को संशोधन करने सम्बन्धी कोई भी आदेश निर्गत नहीं किया गया |इस परिस्थति में में. हिमालय एग्रो केमिकल्स प्रा.ली. के द्वारा किया गया विनिर्माण एवं विपणन कार्य बिना विनिर्माण प्रमाण पत्र एवं विपणन प्राधिकार पत्र प्राप्त किये किया गया है जो उर्वरक नियंत्रण आदेश १९८५ क्र खंड १२ एवं ७ का उल्लंघन है एवं जिसके लिए प्रतिष्ठान के विरूद्ध के. हाट थाना, पूर्णिया एवं फारविसगंज थाना ,अररिया में प्राथमिकी दर्ज की जा चुकी है |
प्वाइंट न. ८ :-उपरोक्त तथ्यों से स्पष्ट है की में. हिमालय एग्रो केमिकल्स प्रा. ली. के द्वारा विनिर्माण प्रमाण पत्र एवं विपणन प्राधिकार पत्र के बिना उर्वरक मिश्रण का विनिर्माण एवं विपणन कार्य कर उर्वरक नियंत्रण आदेश १९८५ के खंड १२ एवं ७ का उल्लंघन किया गया है |प्रतिष्ठान के द्वारा उर्वरक नियंत्रण आदेश के उपरोक्त खंड को उल्लंघन करने के आरोप में दिनांक ३०.०९.२०१० को में. हिमालय एग्रो केमिकल्स प्रा. ली. के द्वारा समर्पित विनिर्माण एवं विपणन प्राधिकार पत्र के नवीकरण हेतु आवेदन को अस्वीकृत किया जाता है |”
N.B. कृषि निदेशक के इस आदेश से निम्न बातें साफ़-साफ़ स्पष्ट हो जाती हैं:-
(क)हिमालय एग्रो केमिकल्स के इस मामले में उर्वरक नियंत्रण आदेश १९८५ के तहत खंड १२ एवं खंड ७ ही लागू होगा न की खंड १८(४) एवं ११(४)
(ख)कृषि निदेशालय के उपर्वर्नित पत्राचार से यह भी साफ़ हो जाता है की यह मामला नवीकरण का न होकर नए अनुज्ञप्ति पंजीकरण का ही होगा | जबकि यह भी सत्य है की यह फेक्ट्री विगत ३० वर्षों से कार्यरत है और १० बार इसकी अनुज्ञप्तियों का नवीकरण हो चूका है |इसका मतलब सीधा है की कृषि निदेशालय के अनुसार इन अनुज्ञप्तियों का स्वतः deregistration हो चुका है |भविष्य में हमारा पंजीकरण नए रूप में हो भी सकता है और नहीं भी हो सकता है |होगा तभी जब इन लोगों को हम विधाता माने और इनकी पूजा अर्चना करें|
(ग) यह भी साफ़ हो जाता है की कृषि निदेशालय में कृषि निदेशक श्री अरविंदर सिंह और संजय सिंह के मन में जो आएगा वो ये करेंगे और न उच्च न्यायालय का कोई आदेश इन लोगों पर लागू होता और न ही कृषि उत्पादन आयुक्त का, क्योंकि कृषि उत्पादन आयुक्त महोदय के आदेश के बाद हमारी प्रयोगशाला में निर्धारित उपकरणों की व्यवस्था कर ली गयी है जिसकी सूचना हमलोगों ने ३०.०९.२०१० को ही दे दी थी,इनलोगों ने इस आदेश के ५३ वे दिन बाद ही हमारे प्रयोगशाला को जांच करवाया |
(घ)इतना ही नहीं प्रयोगशाला के जांचोपरांत दिनांक २३.११,२०१० को जोविभाग द्वारा सम्भव हो पाया ,इस जांच प्रतिवेदन में साफ़ –साफ़ यह प्रतिवेदित है की उर्वरक नियंत्रण आदेश १९८५ की धारा २१(ए) का प्रतिष्ठान द्वारा पूर्णरूपेण पालन कर लिया गया है ,के बाद भी २३ दिन बीत जाने के बाद याने १८.१२.२०१० तक भी नवीकरण करने की कोई प्रक्रिया सिर्फ विचाराधीन थी या यह कहा जाए की हमलोगों पर प्राथमिकी दर्ज और संयंत्र को सील करवाने की प्रक्रिया करने की जुगत में इन २३ दिनों में ये दोनों महानुभाव लगे हुए थे और अंततःइनलोगों ने एक हैवानियत का उदहारण देते हुए हमलोगों पर प्राथमिकी और संयंत्र को सील करवाने की प्रक्रिया को अंजाम दे ही दिया |यह है सुशासन |
(ङ)यह भी स्पष्ट हो जाता है की इनलोगों पर कोई अंकुश नहीं है ,ये लोग अपने आप में एक सरकार है ,क्योंकि हमारी तरफ से दसियों बार कृषि उत्पादन आयुक्त महोदय को इनके इतने असाधारण विलम्ब की सारी कारगुजारियों से अवगत करवाया जा चूका था तथा कृषि मंत्री महोदय को भी मैं स्वयं मिल कर इन कारनामों के बारे में कहा था|यह बतला देना यहाँ आवश्यक है की कृषि मंत्री महोदय से जब हमलोग मिलने गए तो कृषि मंत्री श्री नरेन्द्र सिंह जी द्वारा यह कहा गया की “ये लोग(हमलोगों के बारे में) दो नंबर के आदमी हैं “ और विभाग ने कोई गलती नहीं की है |यह तो समय बताएगा की दो नंबर के लोग कौन हैं ,सिर्फ अपने NUISANCE VALUE के कारण कोई मंत्री पद प्राप्त कर लेता है तो वह आदमी स्वत एक नंबर का सदाचारी इंसान नहीं हो जाता , न ही ऐसे व्यक्ति को मंत्री पद प्राप्त होने के बाद यह कहने का हक मिल जाता है की वह किसी भी उद्यमी को दो नंबर का आदमी कहे |यह भी अत्यावश्यक है की अभी तक माननीय स्वर्गीय श्री अभय सिंह ,दिवंगत सदस्य ,बिहार विधान सभा ,के रहस्मयी मौत के बारे में अभी पर्दा उठाना बांकी है ,और सुशासन की पुरजोर कोशिश भी यही है की इस रहस्य को रहस्य बने रहने देना और जनता की स्मृति से जब यह बात विलुप्त हो जायेगी तब इस रहस्य को दफना देना है ,खास बात तो यह है की मंत्री महोदय के अपने चरित्र से ही नहीं अपनी सारी सांसारिक काया से दो नंबर की बू आती है और श्री अभय सिंह इन्ही के ज्येष्ठ पुत्र भी हैं|चना ,मसूर और खास कर ढैंचा बीज के खरीद में घोटाले का रहस्योदघाटन होना बांकी है |इन बीजों की खरीद में करोड़ों रूपैयों का घोटाला हुआ है जिसमे शीर्ष स्तर के राजनीतिग्य और पदाधिकारियों की संलिप्तता से इनकार नहीं किया जा सकता है |
(च)कृषि निदेशालय के संजय सिंह के हैवानियत,निरंकुशता और बेशर्मियत का एक खास कारण यह भी है की कृषि उत्पादन आयुक्त महोदय के पद पर जिन्होनें रह कर हमारी सुनवाई की थी उनका नाम श्री के. सी. साहा है जो मात्र १५ से २० दिनों के लिए कृषि उत्पादन आयुक्त के रूप में इस कार्यभार को देख रहे थे |लेकिन श्री ए. के. सिन्हा जी के १५ से २० दिनों के अवकाश के बाद पुनः इन्होनें कृषि उत्पादन आयुक्त का प्रभार ग्रहण कर लिया |यह भी यहाँ बतला देना आवश्यक है की श्री ए.के.सिन्हा जी ने हमारे अपील को दो महीने तक टाला और कम से कम इन दो महीनों में ४ बार सुनवाई की तारीख को adjournment for next date करते रहे|इन्होनेंस्वयं अवकाश पर जाने के पहले अंतिम तारीख २९.०९.२०१० दी थी लेकिन ये २३.०९.२०१० से ही अवकाश पर चले गए थे |चूँकि श्री के.सी. साहा साहब कृषि उत्पाफ्दन आयुक्त के पदभार से मुक्त हो गए, तब संजय सिंह को congenial atmosphere मिल गया अपनी हैवानियत को मूर्त रूप देने में|इस बारे में की congenial atmosphere कैसे और क्यों बन गया , मेरे से ज्यादा आप समझ सकते हैं ,मुझे बतलाने की आवश्यकता नहीं है |
हमारे विरूद्ध यह चक्व्यूह की संरचना में संजय सिंह जो अत्यंत दम्भी व्यक्ति है का हाथ है और सब से ज्यादा हैरानी की बात तो यह है की कुछ भा.प्र.से. के पदाधिकारी अपने आप में जब अपने आप को एक सरकार मान लेते हैं तो उनके आचरण और कार्यशैली से आम जनता पर क्या प्रभाव पड़ेगा ,वो जान बुझ कर अनभिग्य बने रहते हैं ऐसे निरंकुश कारनामों से वही आम जन दर दर की ठोकर,कोर्ट से विभाग,विभाग से कोर्ट फिरता रहता है ,और इसी से जन्म लेता है माओवाद, नक्सलवाद , और फिर सुशासन के तहत इस आम जन को सुशासित करने के लिए सुशासन के बाबुओं को एक सुसज्जित सेना का सहारा लेना पड़ता है | वाह रे !आपका सुशासन नितीश बाबु |
२०. हैवानियत और निरंकुशता के साथ साथ उच्च न्यायालय के आदेश की अवमाननना का डर की एक कहानी जिसका रचयिता यही संजय सिंह है वो भी सुन लीजिए | कृषि निदेशालय से निर्गत कृषि निदेशक ,बिहार ने बिहार एग्रो इंडस्टीज,फारविसगंज (यह प्रतिष्ठान भी विगत ३५ वर्षों से कार्यरत है और दानेदार मिश्रित उर्वरक का उत्पादन करता है )को एक पत्र लिखा जो इस प्रकार है :-
प्रेषक , पत्र संख्या १३२१ /२२.११.२०१०
अरविंदर सिंह ,भा.व्.से.,
कृषि निदेशक,बिहार |
सेवामें ,
जिला कृषि पदाधिकारी ,
अररिया |
विषय :- में. बिहार एग्रो इंडस्ट्रीज,फारविसगंज के द्वारा पुनः उत्पादन कार्य शुरू किये जाने के सम्बन्ध में |
महाशय ,
उपर्युक्त विषयक प्रसंग में कहना है की में.बिहार एग्रो इंडस्ट्रीज ,फारविसगंज ने CWJC16645/10 में पारित न्यायादेश के आलोक में पुनः उत्पादन कार्य शुरू करने की सूचना दी है |न्यायादेश के आलोक में प्रयोगशाला सुविधा की जांच की प्रक्रिया की जा रही है |कृषि निदेशालय से तदोपरांत समुचित आदेश पारित किया जाएगा |कृषि निदेशक के द्वारा जब तक विनिर्माण प्रमाण पत्र का नवीकरण नहीं किया जाता है तब तक विनिर्माण कार प्रारम्भ करना उर्वरक नियंत्रण आदेश १९८५ के खंड १८ का उल्लंघन है और गैरकानूनी है|
आप अपने स्तर से जांच कर न्यायसंगत कार्रवाई करना सुनिश्चित करें |
ह. अरविंदर सिंह दिनांक २२.११.२०१० (मो. न. ९४३१८१८७०४)
२१. बिहार एग्रो इंडस्ट्रीज ,फारविसगंज के मामले में जिला कृषि पदाधिकारी ,अररिया श्री बैद्यनाथ यादव ने दिनांक १०.१२.२०१० को पत्र संख्या १०३८ से परियोजना कार्यपालक पदाधिकारी अररिया को संबोधित करते हुए लिखा जो इस प्रकार है :-
विषय :-मेसर्स बिहार एग्रो एजेंसीज ,फारविसगंज द्वारा कृषि निदेशक,बिहार,पटना के पत्र संख्या १३२१ दिनांक २२.११.२०१० में निहित निदेश का उल्लंघन कर पुनः उत्पादन कार्य प्रारंभ करने के सम्बन्ध में |
प्रसंग:कृषि निदेशक, बिहार ,पटना का पत्र संख्या १३२१ दिनांक २२.११.२०१० |
महाशय ,
उपर्युक्त विषय के सम्बन्ध में कहना है की इस कार्यालय के पत्र संख्या १००२ दिनांक ३०.११.२०१० द्वारा आपको उपरोक्त निर्माता कंपनी को जांच करने का निदेश दिया गया था |
कृषि निदेशक,बिहार पटना के विषय अंकित पत्र जिसकी प्रति विनिर्माता इकाई को भी दी गयी है में निहित निदेश की उन्हें विनिर्माण प्रमाण पत्र का नवीकरण होने तक ,विनिर्माण कार्य पुनः आरम्भ नहीं करना है ,ऐसा करने से उर्वरक नियंत्रण आदेश १९८५ का खंड (१८) का उल्लंघन होगा एवं गैरकानूनी भी है |
कृषि निदेशक,बिहार पटना के इस निदेश के बाउजूद भी सम्बंधित विनिर्माता कंपनी के द्वारा उर्वरक नियंत्रण आदेश का उल्लंघन कर विनिर्माण कार्य किया जा रहा है |
अतः आपको निदेश दिया जाता है की अविलम्ब निम्नांकित कार्रवाई करना सुनिश्चित करें:-
(i)विनिर्माण इकाई में विनिर्माण कार्य में रोक लगा दें |
(ii)विनिर्मित सामग्री एवं कच्चा माल का जब्ती सूची तैयार कर निर्मित सामग्री का नमूना संग्रह कर प्रयोगशाला में भेजें |
(iii)कच्चा माल कहाँ से प्राप्त किया गया है उसका स्त्रोत्र प्राप्त कर साक्षय तैयार कर कार्रवाई करें |
(iv)कृषि निदेशक ,बिहार,पटना के प्रासंगिक पत्र के आलोक में अवैध निर्माण कार्य करने के कारण उर्वरक नियंत्रण आदेश १८९५ खंड (१८) का उल्लंघन करने के आरोप में स्थानीय थाना में प्राथमिकी दर्ज करें |आवश्यकतानुसार स्थानीय थाना एवं अनुमंडल पदाधिकारी फारविसगंज का सहयोग प्राप्त कर कृत कार्रवाई से अध्योहस्ताक्षरी एवं कृषि निदेशक ,बिहार,पटना को भी अवगत करें |
ह. बैद्यनाथ यादव ,जिला कृषि पदाधिकारी |
२२. इसके उपरांत दिनांक १२.१२.२०१० को पत्रांक संख्या १५३ से परियोजना कार्यपालक पदाधिकारी ,फारविसगंज श्री मक्केश्वर पासवान ने स्थानीय थाना फारविसगंज में बिहार एग्रो इंडस्ट्रीज पर प्राथमिकी दर्ज कराते हुए इस फेक्ट्री को भी सील कर दिया |
२३.अचानक तारीख २३.१२. २०१० को इस फेक्ट्री मालिक श्री अभय दूगड को भी स्पष्टीकरण पूछा जाता है जिसमे कृषि निदेशक कार्यालय का पत्रांक १४६० अंकित है वो इस प्रकार है:-
“प्वाइंट न. २ उपरोक्त से स्पष्ट है की आपके द्वारा उर्वरक नियंत्रण आदेश १९८५ के खंड १२ का उल्लंघन करते हुए विनिर्माण प्रमाण पत्र के नवीकरण के बिना विनिर्माण कार्य किया जा रहा है जो गैरकानूनी है |उल्लेखनीय है की इस क्रम में आपके विरूद्ध फारविसगंज थाना में वाद सं.४८९/१० दिनांक १२.१२.२०१० भी दर्ज किया गया है |
प्वाइंट न.२ आप स्पष्ट करें की उपरोक्त आरोप के आलोक में क्यों नहीं आपके प्रतिष्ठान का विनिर्माण प्रमाण पत्र एवं विपणन प्राधिकार पत्र के नवीकरण हेतु प्राप्त आवेदन को उर्वरक नियंत्रण आदेश के खंड १८ (२) के अंतर्गत अस्वीकृत कर दिया जाए |आप अपना स्पष्टीकरण दिनांक २८.१२.२०१० तक अवश्य समर्पित करें अन्यथा एकतरफा निर्णय ले लिया जाएगा |”
२४. फिर अचानक ६.०१.२०११ को कृषि निदेशक ,कार्यालय से एक आदेश निकलता है जिसकी आदेश संख्या २० दिनांक ६.०१.२०११ है वो इस प्रकार है :-
प्वाइंट न. २ :-“ माननिय उच्च न्यायलय ,पटना के आदेश के आलोक में में. बिहार एग्रो इंडस्ट्रीज के प्रयोगशाला का जांच प्रतिवेदन एवं उपलब्ध अभिलेखों के आलोक में में. बिहार एग्रो इंडस्ट्रीज का विनिर्माण प्रमाण पत्र एवं विपणन प्राधिकार पत्र का नवीकरण करने का निर्णय लिया जाता है एवं बिहार एगो इंडस्ट्रीज को सील मुक्त किया जाता है |”
कृषि निदेशक ,बिहार,पटना द्वारा इस तरह से हुबहू एक ही तरह के आरोप में एक फेक्ट्री को सील मुक्त एवं उनकी अनुज्ञप्तियों को नवीकरण करने का निर्णय ले लिया जाता है और
इसी तारीख को हमारी फेक्ट्री के अनुज्ञप्तियों के नवीकरण की प्रक्रिया को स्थगित कर दी जाती है और नवीकरण अस्वीकृत कर दिया जाता है जिसके बारे में निर्गत आदेश संख्या २५ दिनांक ७.०१.२०११ का वर्णन हमारे इस प्रतिवेदन के प्वाइंट न. १९ पर वर्णित है |
कितना अभूतपूर्व उदहारण पेश किया गया है सुशासन का |
२५.इसी संजय सिंह की हैवानियत का वर्णन आपने सुन ही लिया |अब देखिये की यही शख्स दिनांक ११.१.२०११ को उच्च न्यायालय से माफ़ी मांगता है जिसका वर्णन इसने अपने ही अपने शपथ-पत्र द्वारा इस प्रकार किया है :-
Most Respectfully sheweth :-
1.That the deponent offer unconditional and unqualified apology for any inconvenience caused to the Hon’ble High Court in the due administration of Justice.
2.That the deponent has a great respect for law as well as the Hon’ble courtand he cannot think to go against the slightest observation made by the Hon’ble Court .
3.That the deponent is duty bound to comply each and every words of Hon’ble High Court in the same spirit in accordance with law .
4.That at the outset it is informed that the certificate of manufacture and letter of authorisation of M/S Bihar Agro Industries have been renewed on 7.01.2011 .An unqualified and unconditional apology is being tendered for the procedural delay in comply with the matter —-A photo copy of renewed certificate of manufacture and letter of authorisation is annexed herewith and marked as annexure 1 series to this show-cause
And thus are point 5 ,6,7,8 and 9 .
अब आप समझ सकते हैं आपके विभागों के पदाधिकारियों की हैवानियत की करतूतें और कोर्ट के डर से इनके भींगी बिल्ली बन जाने का तरीका.
जो भी हो इस व्यक्ति संजय सिंह ने ८ महीने तक इस फेक्ट्री और हमारी फेक्ट्री को १० महीने तक घोर अपराधिक षड्यंत्र कर के बंद करवा दिया |सहज अनुमान लगाया जा सकता है की हमलोगों का जो नुकसान हुआ वो तो हुआ ही ,पर हमारी प्रतिष्ठा पर भी इस हैवान द्वारा कुठाराघात किया गया |आज तक सैकडो मजदूर बेरोजगार बैठे हुए हैं |लाखों की खाद पानी होकर बह चुकी है |३५ नियमित कामगार भाग चुके हैं |लाखों रुपैया जो राजस्व के रूप में राज्य सरकार और केंद्रीय सरकार को दिया जाता था ,ऐसी सभी व्यवस्था छिन्न-भिन्न हो गयी है |बैंकों के कर्ज पर व्याज अनावश्यक बढ़ रहा है | लाखों की प्लांट और मशीनरी जंग खा रही है और बेकाम हो गयी है |
कैसा सुन्दर उदहारण है सुशासन का यह अनुमान लगाया जा सकता है |
२६. इसी संजय सिंह ने ७ लाख ३० हज़ार रुपैया बिहार एगो इंडस्ट्रीज से लेकर इनके कारखाने को इतनी प्रताडना देने के बाद भी आखिर लिया और तभी चालु या अनुज्ञप्ति नवीकरण का आदेश कृषि निदेशक से दिलवाया |हमलोगों से इसकी मंशा १० लाख रुपैया लेने की थी |इस व्यक्ति ने तारीख २६.११.२०१० से लेकर १३.१२.२०१० तक बार बार तरह तरह के लोगों से हमेशा हमारे ऊपर दबाव बनाया की १० लाख रुपैया इनको दे दें नहीं तो अनुज्ञप्तियों को कभी भी नवीकृत नहीं किया जाएगा और यह भी धमकी दिलवाते रहा की समय रहते पैसा नहीं मिलेगा तो आगे क्या क्या होगा उसका हमलोगों को भुक्तभोगी होना पड़ेगा |
इसकी इस नाजायज़ पैसे की मंशा पूरी नहीं होते देख इस हैवान ने गैरकानूनी तरीके से आखिरकार हमारी फेक्ट्री को १८.१२.२०१० को सील करवा दिया और प्राथमिकी दर्ज करवा ही दी |
२७.यहीं पर फिर सिलसिला खत्म नहीं होता है |हमलोगों ने इस अन्याय के खिलाफ फिर उच्च न्यायालय में एक I.A. याचिका दी और इस याचिका की सुनवाई २७.०१.२०११ को हुई और आदेश जो निकला वो इस प्रकार है:-
Point no.11- From the facts and circumstances of this case as well as order of the authorities (annexure 3 &4),it is quite apprent that the authorities as well as the petitioner had taken steps as per clause 32 and 32 A according to which the appeal was filed by the petitioner himself which was entertained by the appellate authority .The impugned order is in continuation of the said battle and hence,the corse of appeal being available to the petitioner ,there is no occasion for this court to entertain this writ petition .Accordingly this writ petition is disposed of with a liberty to the petitioner to challenge the impugned order of the Director (Agriculture)before the Agriculture Production Commissioner under the aforesaid provisions raising all the points that he raised here and the said appellate authority will decide the same in accordance with law considering the provisions of law as well as the decision of this court in similar matters .If the petitioner files an appeal within 15 days from today ,the appellate authority shall decide the same expeditiously preferably within aperiod of 6 weeks from the date of filing of the appeal …sd/- (S.N. Hussain ,J)
२८.हमलोगों ने फिर कृषि उत्पादन आयुक्त महोदय के यहाँ अपील कर दी |लेकिन एक बड़ा ही रोमांचकारी तथ्य सामने आया |५ सप्ताह बीत जाने के बाद इसी संजय ने फाइल पर एक नोटिंग बना कर यह लिखा की २००३ में ही एक कृषि विभाग का प्रशासनिक आदेश निकला हुआ है जिसमे निदेशक कृषि के आदेश के खिलाफ अपील सचिव (कृषि ) को ही सुनना है |इसलिए सचिव (कृषि ) ही इस मामले को सुने |सचिव(कृषि) ने भी इसकी सुनवाई हेतु इसी फाइल में अपनी हामी भर दी |और १२.३.२०११ को हमारी सुनवाई हो गयी जिसका आदेश २१.३.२०११ को प्राप्त हुआ जो स्वयं एक सुशासन का अपने आप में एक नमूना है ,वो इस प्रकार है :-
Point no. 4 . 11 . It would not be out of place to state that the petitioner contends that this case was similar to that of Bihar Agro Industries ,Forbesganj ,whose licence has been renewed on 6 th January 2011.
Point no.5.1 The respondents basic contention is that the appellant in wilful disobedience of the Order of the Agriculture Production Commissioner dated 30.09.2010(as written in the order it is 30.09.2011)wherein mandatory laboratory equipments were to be obtained and inspection conducted to the satisfaction of the licensing authority.The appellant thus violated the basic condition of licensing as laid down under clause 7 &12 of the Fertilizer Control order 1985 .
Point no. 5.2.The respondents aslo state that the laboratory equipments available was insufficient thus the appellant failed to fulfill the NECESSARY AND MANDATORY ORDER OF THE AGRICULTURE PRODUCTION COMMISSIONER .
On careful consideration of the argument of both the sides it is apprent that the bone of contention is whether the petitioner was lawful in initiating production without waiting for renewal of licence vide clause 18(4)and 11(4)or the licensing authority is competent in enforcing clause 7 and 12 of the fertilizer control order 1985 .
In my view of the matter on a reading the bare control order I find the petitioner seriously deficient in not waiting for a renewal order to be passed by the licensing authority where he had waited since March 2010 another month or so wouldn’t have made any difference.Further more the order of the Appellate Authority was not absolute rather conditional which presupposed the satisfaction of the Licensing authority before start of production .The petitioner clearly failed to interpret the order in the spirit it was delivered rather he became impatient and controverted the order thereby contravening the provisions of clause 7 & 12 of the fertilizer control order 1985 .
Hence in the light of the above ,I, appellate authority (vide notification dated 18.8.2003 )hereby dismiss the appeal and uphold the order of the learned licensing authority passed on 7.01.2011. sd/- C.K. Anil
अब आप देख सकते हैं की बिहार एग्रो इंडस्ट्रीज और हमारा matter एक ही हैं यह हमने अपनी अपील में सारे कागजातों के साथ लिख कर दिया |सारे ३ पन्नों के इस आदेश में कहीं भी इस बात का जिक्र नहीं है की हमलोगों का कथन की दोनों फेक्ट्रियों का मामला एक ही जैसा है ,यह कथन सही है या नहीं |
शायद जिक्र इसलिए नहीं है क्योंकि मामला एक ही जैसा है और एक को लाइसेंस दिया जाता है और दुसरे को और फंसाया जाता है चूँकि इस सच्चाई के विरूद्ध विभाग पूर्णतया नंगा है |
प्वाइंट नो.५. १. |बात समझ के बाहर है क्योंकि त्रिसदस्सीय पदाधिकारियों के दल द्वारा प्रयोगशाला की जांच बहुत पहले २३.११.२०१० को ही कर ली गयी थी और इस जांच दल का जांच प्रतिवेदन बड़ा स्पष्ट है जो ऊपर mention किया हुआ है |
शायद मांगे गयी राशि (दस लाख रुपैया )नहीं दिया गया था इसलिए यह बात सामने आई की inspection was not conducted according to the satisfaction of the licensing authority.
प्रयोगशाला में धारा २१ (ए) में निहित उपकरणों का type और कितनी मात्र में ये उपकरण रखे जाने है , इसके अलावा और कोई शर्त अलावा इसके की १० लाख रुपैये की मांग संजय सिंह द्वारा की गयी थी ,और कोई कानूनी प्रावधान हमल्गों के समझ के बाहर है |
सचिव (कृषि ) द्वारा यह लिखा जाना की “if the petitioner would have waited for one month or so when he had waited since March 2010 wouldn’t have made any difference “ क्या इस बात से यह नहीं लगता है की इस मामले में कुछ भी आरोप जो विभाग ने लगा कर हमारे साथ एक क्रूर खेल खेला है ,वो कोई आरोप ही नहीं है ,सिर्फ हमलोगों को जरूरत थी की इन विधाताओं को खुश रखने की, एक महीना और बिना फेक्ट्री चलाये हमलोग रहते तो ये विधाताओं का मान बना रहता या हमलोग भी बिहार एग्रो की तरह तंग आकार इनकी जेबों को भर देते याने १० लाख रुपैया दे देते तो सब कुछ ठीक था ,तब यही कानून बदल जाता |
आज के दिन भी हमारा उत्पादन बंद है |सैंकडो मजदूर बेरोजगार हो गए हैं ,बैंकों का लाखों रुपियों का व्याज देना पड़ रहा है और करीब १५ लाख रुपियों की खाद पानी होकर बह चुकीं है |इस संजय जनित क्रूरता के कारण मेरे पिता मानसिक रूप से अस्वस्थ हो गए हैं जो ८० वर्ष के हैं |
अगर हो सके तो पुरे मामले की जांच करवा ली जाए और न्याय दिलवाने की व्यवस्था की जाए.
आपका
शम्भू गोयल
मेनेजिंग डाइरेक्टर,
हिमालय एग्रो केमिकल्स प्रा. ली.
फारविसगंज (अररिया )